भूकंप क्या है आने के कारण बचाव के उपाय और प्रभावित क्षेत्र | Earthquake In Hindi

भूकंप क्या है आने के कारण बचाव के उपाय और प्रभावित क्षेत्र Earthquake In Hindi: पृथ्वी के आंतरिक भाग में होने वाली किसी घटना से जब पृथ्वी के किसी भाग पर कम्पन होता है तो उसे भूकंप (Earthquake) कहते है.

भूकंप प्राकृतिक आपदाओं में बहुत विनाशकारी आपदा है, इसमे कुछ ही क्षणों में विनाशकारी परिवर्तन हो जाता है. भूकंप की तीव्रता सिस्मोग्राफ यंत्र के द्वारा रिक्टर पैमाने पर मापा जाता है.

भूकंप क्या है कारण बचाव उपाय प्रभावित क्षेत्र Earthquake In Hindi

भूकंप क्या है आने के कारण बचाव के उपाय और प्रभावित क्षेत्र | Earthquake In Hindi

रिएक्टर पैमाने को चार्ल्स रिक्टर ने विकसित किया था. इन्ही के नाम से निर्मित इस यंत्र का नाम रिक्टर है. इस रिक्टर पैमाने पर भूकंप की तीव्रता 1 से 12 तक मापी जाती है.

रिक्टर पैमाने पर भूकंप की तरंगो की तीव्रता 5 तक मापी जाए तो इसे सामान्य भूकंप कहा जाता है. जैसे जैसे तीव्रता की मात्रा बढ़ती जाती है, भूकंप महाविनाशकारी रूप ले जाता है.

भूकंप क्या है (what is earthquake in hindi)

भूकंप एक आकस्मिक व विनाशकारी परिघटना है जिसके कारण जहाँ सैकड़ो मकान धराशायी हो जाते है. वही अनगिनत व्यक्ति असमय ही काल कलवित हो जाते है.

भूकंप शब्द का अर्थ है पृथ्वी का हिलना, पृथ्वी के गर्भ में होने वाली किसी हलचल के कारण धरातल का कोई भाग अचानक हिलने लगता है तो उसे भूकंप कहते हैं.

सामान्यतः पृथ्वी में लगातार कम्पन होते रहते है. परन्तु अधिकांश कम्पन बहुत हल्के होते है और उनका पता ही नहीं चलता है. इन कम्पनों का जीवन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता हैं.

भूकंप आने के कारण (The Causes of Earthquakes In Hindi)

पृथ्वी पर विवर्तनिक गतियों का परिणाम ही भूकंप है, विवर्तनिक गतियो में भूप्लेटों का प्रवाह भूकम्प का कारण बनता है. पृथ्वी पर संतुलन की प्रक्रिया निरंतर जारी रहने से भी भूकंप की उत्पति होती है.

इस प्रक्रिया से भू पटल पर भ्रश व उत्थान होते रहते है. पृथ्वी से निरंतर निकलने वाली ऊष्मा से संकुचन होता है, यदपि यह प्रक्रिया बहुत लम्बे काल तक चलती है पर संकुचन भी भूकंप की उत्पति का कारण बनता जा रहा है.

भारत में भूकंप प्रभावित क्षेत्र (Earthquake Sensitive / affected area in India)

भारत में आए भूकम्प को देखा जाए तो ज्ञात होता है, कि उत्तरी पर्वतीय क्षेत्र व उसकी तलहटी में सर्वाधिक नवीन मोडदार पर्वत है. हिमालय नविन मोडदार पर्वत का हिस्सा है. जो अभी भी उत्थान की अवस्था में है.

हिमालय क्षेत्र में अभी भी संतुलन की स्थति स्थापित नही हुई है. अतः इस क्षेत्र में सर्वाधिक भूकंप आते है. प्रायद्वीप पठार को स्थिर भूभाग माना जाता रहा है.

लेकिन कोयना व लातूर के भूकम्पों के बाद इस क्षेत्र को भी भारत में भूकंप प्रभावित क्षेत्र में माना गया है. यही स्थति गुजरात के कच्छ भुज क्षेत्र की है.

साधारणतया भूकंप कही भी आ सकते है किन्तु कुछ क्षेत्र इसके लिए लिए विशेष संवेदनशील होते हैं. दुर्भाग्यवश जिन क्षेत्रों में अधिक जैव विविधता पाई जाती है. भारत में वे क्षेत्र भूकंप के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं.

ये भाग पृथ्वी के दुर्बल क्षेत्र होते हैं. जहाँ वलय भ्रंश जैसी हिलने की घटनाएं अधिक होती हैं. सरंचना के अनुसार भारत को निम्नलिखित तीन भूकंप क्षेत्रों में बांटा जा सकता हैं.

  1. हिमालय का भूकंप क्षेत्र- यह भूभाग अभी भी अपने निर्माण स्थिति में हैं. इसलिए भूसंतुलन की दृष्टि से यह एक अस्थिर भाग है, जिससे प्रायः भूकंप अनुभव किये जाते हैं.
  2. उत्तरी मैदान का भूकंप क्षेत्र- इस मैदान की रचना असंघटित जलोढ़ मिटटी से हुई हैं. और इसमें हिमालय के निर्माण के समय संपीडन के कारण कई दरारें बन गई. भूग्रभित हलचलों से यह प्रदेश जल्दी कम्पित हो जाता हैं.
  3. दक्षिण के पठार का भूकंप क्षेत्र- यह भारत का प्राचीन और कठोर स्थल खंड हैं जो भूसंतुलन की दृष्टि से स्थिर माना जाता है. इसलिए इस क्षेत्र में बहुत कम भूकंप आते हैं. जिनमें 1967 का कोयला भूकंप और 1993 का लातूर भूकंप महत्वपूर्ण हैं.

भूकंप पर निबंध/पैराग्राफ (Short Essay / Paragraph on Earthquake In Hindi)

उत्पति के आधार पर विभिन्न आपदाओं को दो भागों में विभाजित किया जाता है, मानव जनित और प्राकृतिक. दोनों प्रकार की आपदाओं में भी बड़ी जन माल के नुकसान की संभावनाएं रहती है.

प्रकृति को मानव का वरदान कहा जाता है, लेकिन कई बार अपने लालच के चलते मानव अपने तरीके से प्रकृति का अहित करता है, जिसके चलते प्राकृतिक आपदाओं का भुगतान भी चुकाना पड़ता है.

प्रमुख प्रकृति जनित आपदाओं में भूकंप सूनामी भूस्लखन और बाढ़ सर्वाधिक नुकसान पहुचाते है. भूकंप एक ऐसी ही प्राकृतिक आपदा है,

जो कुछ ही क्षणों में विनाशकारी परिवर्तनों का ऐसा स्वरूप मानव समाज के सम्मुख उपस्थित कर देती है कि ह्रद्य दहल जाता है. भूकंप आने से हजारों जाने काल का ग्रास बन जाती है.

पृथ्वी की सतह पर दरारे पड़ जाती है, आवागमन के मार्ग टूट जाते है. भवन रेत के ढेर की तरह भरभरा कर गिर जाते है. नहरों पुलों व बाँधो को क्षति पहुचती है, ये समस्या भविष्य में खतरे का पर्याय बनती जा रही है.

भूकंप से बचाव व प्रबंधन (earthquake rescue equipment list)

भूकंप का प्रबंधन (Earthquake management)

भूकंप से बचाव के उपायों को प्रमुखतः तीन चरणों में बांटा जा सकता हैं.

भूकंप पूर्व क्या करे-

  1. भूकंप से मकानों में क्षति न हो अथवा कम क्षति हो इसके लिए स्थानीय प्रशासन के अंतर्गत कार्यरत अभियंताओं एवं विशेयज्ञों की देखरेख में भूकंप प्रतिरोधी निर्माण किया जाए.
  2. घरों में पौधों भारी बर्तनों में न लटकाएं, भूकंप के समय इनके गिरने से भारी नुक्सान हो सकता हैं.
  3. ज्वलनशील पदार्थो को सुरक्षित बक्से मे रखे.
  4. स्कूल व महाविद्यालय स्तर पर बच्चों को भूकम्प के बारे में जानकारी दी जानी चाहिए.
  5. भूकंप संभावित क्षेत्रों में सरकारी व स्वयंसेवी संस्थाओं की सहभागिता से बचाव दल बनाएं, जो समय आने पर लोगों की मदद की जा सके.
  6. संकटकालीन सूचनाओं को रेडियों व टेलिविज़न पर निरंतर प्रसारित करे.
  7. भूकंप की संभावना होने पर खुले स्थान में चले जाना चाहिए.

भूकंप के समय क्या करे

  1. भूकंप आने पर खुला स्थान, जहाँ भवन पेड़, बिजली के खम्भे और पावर लाइन ना हो दूर सुरक्षित स्थान ढूढे.
  2. आवश्यकतानुसार दवाइयां, कम्बल व अन्य सामग्री के वितरण का प्रबंध किया जाए.
  3. ज्वलनशील वस्तुओं व पदार्थों का उपयोग न करे.
  4. यदि गैस लिक होने की सम्भावना हो तो बिल्डिंग छोड़ दे तब तक सुनिश्चित न हो जाए कि गैस लीक नहीं होगी, आप माचिस न जलाए और न ही बिजली को चालू करने का प्रयास करे.
  5. घायलों को प्राथमिक चिकित्सा उपलब्ध करवाएं.

भूकंप के बाद क्या करे

  1. मृतकों व पशुओं के अवशेषों को एकत्रित करे व उसका निस्तारण करे.
  2. अस्थायी शरण स्थल का प्रबंध करे. भोजन व पानी की अशिर्त का प्रबंध करे और पानी की आपूर्ति पुनर्स्थापन करे.
  3. दूरसंचार व सूचना की निरन्तरता बनाए रखने हेतु लाइन का पुनरुद्धार करे.
  4. परिवहन सम्बन्धी संचार व्यवस्था पुनर्स्थापना करे.
  5. तुरंत कंट्रोल रूम की स्थापना की जाए, यह व्यवस्था जिला मुख्यालय ब्लोक मुख्यालय और प्रभावित क्षेत्र पर की जाए.
  6. चोरी और लूट आदि की संभावनाओं को कम करने के लिए सेना व पैरा मिलिट्री फोर्सेस से सहायता ली जावे.
  7. घायलों की चिकित्सा के लिए मोबाइल यूनिट का प्रबंध किया जाए.

भूकंप के प्रकार (Types of earthquakes)

साधारणतया भूकंप के प्रकारों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया जाता है, जो प्रभाव के आधार पर कम से अधिक की ओर होता है.

भूकंप का वर्गीकरण (Classification of earthquake in hindi)

भूकंप का वर्गीकरण, भूकंप की गहराई के आधार पर किया जाता हैं. जो मुख्यतः चार प्रकार के होते हैं.

  1. सतही भूकंप- इस तरह के भूकम्पों के भूकंप की मूल की गहराई एक किलोमीटर तक स्थित होती हैं.
  2. सामान्य भूकम्प- इस तरह के भूकंप के भूकंप की मूल 50 किलोमीटर तक गहराई होती हैं.
  3. मध्यवर्ती भूकंप- इस भूकम्पों के भूकंप की मूल गहराई 50 से 250 किलोमीटर तक होती हैं.
  4. पातालीय भूकंप- इस तरह के भूकम्पों की गहराई धरातल के नीचे 250 से 700 किलोमीटर के बीच होती हैं. इस प्रकार के भूकंप कम ही आते हैं.

भूकंप के प्रभाव (effects of earthquake in hindi language)

प्राकृतिक आपदाओं में भूकंप सबसे अधिक भीषण और विनाशकारी होते हैं. भूकंप कुछ ही क्षणों में ही व्यापक जनहानि का कारण बन जाते हैं. अतः मानव भूकम्पों को सदैव अभिशाप मानता आया हैं.

भूकंप के प्रकोप से इमारतें ध्वस्त हो जाती है. भूमि धस जाती हैं, दरारे पड़ जाती हैं. समुद्र में तूफ़ान आते हैं. और प्रायः जन व धन दोनों की व्यापक हानि होती हैं.

इन हानियों के अतिरिक्त भूकंप के कुछ लाभ भी होते हैं. भूकंप तरंगों का अध्ययन पृथ्वी की आंतरिक संरचना की जानकारी पाने में सहायक होता हैं.

समुद्र तट के धसनें से अच्छी खाड़ी तथा बन्दरगाह बन जाते हैं. भूकंप के कारण धरातल पर कई नवीन भू आकारों जैसे द्वीप, झीलें तथा बंदरगाह भी बन जाते हैं. जो कि मानव के लिए कभी कभी बड़े उपयोगी सिद्ध होते हैं.